बात ऐसी तो नहीं चलती की ,
आँखें दरिया बन जाए,
मन ऐसा तो नहीं मचलता की,
जान पे बन आये,
फिर भी,
मौजे उठती हैं,
तूफ़ान लेकर आती है,
कभी न कभी ये तबाही जरुर लाएगी,
ये सोच कर दिल घबराता है.
बनते बिगडते घोसलों की तरह,
बिखर रहें हैं ,कुछ बेनाम रिश्ते,
चहकने की जगह चीख रहें हैं,
ये घोसलों में बसनेवाले परिंदे.
जीना है इसी पल को,
जेसा भी है,वो मेरा है,
बिता हुआ कल ,
न फिर लौटेगा,और,
आने वाले का पता नहीं,
कहीं ऐसा न हो,
की खुशियाँ मनाने के ,
इंतजारमें,
हम आज को खो बैठें,
या फिर,जब
कार खरीदी जाए,
तो ब्रेक लगाने के लिए,
पाँव ही न चले
जिंदगी बनके तेरी याद ,
आँखों से बहने लगती है,
जब पिघली हुई साँसें,
कांटे सी चुभने लगती है...
छुईमुई सी लगती थी,
बड़ी शर्मीली लगती थी,
मेरी कुछ नादाँ ख्वाहिशें,
बड़ी ही जानलेवा लगती थी,
आज ....
उन्ही ख्वाहिशों को ,
याद करते हुए,
मैं खुद ही,
छुईमुई बन जाती हूँ,
वक्त के चलते ,
इच्छाएं भी
नया रूप धर लेती है,
और इसी दायरेमें ,
सिमट कर हम भी,
जीये जाते हैं.....
सडकों पे गुनगुनाता पानी,
अपनी मस्तीमें बह रहा है,
कुछ इसे नजरअंदाज कर रहे हैं,
कुछ इसपे गुस्सा हो रहे हैं,
और,
कुछ लोग इसकी मस्तीमें ,
खुद को भिगो रहें हैं,
सबका अपना नजरिया है,
चाहें खुश हो ले,
चाहें गमगीन ,
इसने तो बहना है,.
गुज़रती जा रही है,
लौट कर ...
कभी न आने वाले पलों में,
जिंदगी......
हाथ से निकलती जा रही है,
एक-एक पल बनकर,
अजनबी........
फिर कभी इस पल को ,
इस जीवनमें न जी पाउंगी,
यही सोच कर सहम रही है ,
बेबसी........
पल-पल में बदलते ,
जीवन के हालात,
प्रतिक्षण ईश्वर का,
अहसास कराते हैं,
जिसे समजना ,
इंसान के बस की,
बात नहीं,
मेरे जीवन का आयोजन,
मेरा किया हुआ है,
ये मित्थ्या अभिमान,
का कोई अर्थ नहीं,
जब डोर उपर से खींचती है,
तो हमें हर हाल में ,
नाचना पडता है.........
सूरज को जलना है,
धरती को सहना है,
फूलों को खिलना है,
पानी को बहना है,
सबकुछ तय है,
फिर भी ............
ये तय नहीं है,
कि...
कौन किस नज़रिए से ,
इसे देखता है,
शायद उन्हें,
सूरज का सहना और,
धरती का जलना ,
लग सकता है...
इंसान की नियत ,
उसकी नेकी पे ,
असर कर सकती है,
पर,नेकदिल इंसान ,
की नियत बदलना,
नामुमकिन होता है
उसके विचार ही,
उसकी अंतरात्मा का,
आयना होता है........
भरी-भरी बूंदों में,
एक नाम उभर आया है,
जबकि हम जानते हैं,
ये पानी का छलावा है,
बूंदों के बहने पे,
इसने भी बह जाना है,
फिर भी अपने होने का,
एहसास उसने कराना है,
जाने के लिए ही सही,
पर याद तो उसने आना है...
मन कहे तो आसमां,
मन कहे तो दरिया,
कभी चाहें वो उड़ना ,
तो कभी चाहें डूबना,
मन पतंग बन लहराए,
तो डोर कहीं अटक जाए,
और, जब डूबना चाहें ,
तो तैर कर बाहर आ जाए,
एसो मन को क्या भरोसो,
कब कहाँ से कहां भाग जाए
धडकन पे कब्ज़ा किये ,
कब तक रह पाओगे,
इस बोज के मारे जब,
हम ही चले जायेंगे,
तब तुम कहां जाओगे...
वादें और कसमों में फर्क होता है,
वादा करने पर,
निभाने की इच्छा जताई जाती है,
कसमें खाने पर,
निभाने के लिए जान दी जाती है,
तभी तो ....
कोई वादे से मुकर भी जाता है,
तो कोई......
वादा निभाने की भी कसम खाता हैं.
जलती हुई इस दुनिया में,
एक चाँद मेरा तू है,
जो रात की आगोश में,
मेरे सपनो को ,
लिपटा रहता है,
इसी शीतलता से,
मेरा दिन उजागर होता है
कल्पनाओं के रास्ते,
बड़े अजीब होते है,
न कोई ओर होता है न छोर,
पीछे धुंधला दीखता है,
आगे गहरा दरिया,
इसीलिए कल्पनाओं के घोड़े ,
अक्सर खो जाते हैं,
या...
डूब जाते हैं.......
जिंदगी खुशी से चलती रहती है,
दिलमें दुनिया के दर्द समेटे हुए,
वो खुशनसीब इंसान होते हैं,जो....
दर्द को जिंदगी की परिभाषा समजते हैं ..
जब तक न हो ,
समंदर की मर्जी,
कश्तियाँ तैर नहीं सकती,
वो चाहें तो,
किनारे पे ही,
डुबोने की है उसकी हस्ती,
और चाहे तो,
पार लगा देता है,
अदनी सी कश्ती.....
जित का इतना जश्न न मना,
गर मैं न हारती तो जित कहां से आती,
मेरा शुक्रिया अदा कर ए दोस्त,
की मेरी हार ही तेरी जित का पैमाना है.
अगर गिना जा सकता ,
तो सितारे कम पड जाते,
अगर देखा जा सकता,
तो संजयद्रष्टि भी काम न आती,
अगर सूना जा सकता,
तो चकोर हिरन भी गिनतीमें न आता,
सिर्फ.....
महसूस किया जा सकता है,
और...
सिर्फ दिलवालों का ही ये काम है,
दिल और दर्द का अफ़साना,
सबके लिए आसान नहीं.........
Monday, October 8, 2012
कभी कोई अनजाना सा चेहरा,
जेहन में यूँ उतर जाता है,
लाख भुलाने की कोशिश के बाद भी,
चारों ओर नजर आता है,
बरसों बाद मिलने पर ,
नाम याद नहीं आता,
फिर भी ,
वो चेहरा अपना सा लगता है,
ऐसा क्यूँ होता है,
इसीलिए क्या.....
पिछले जन्म के रिश्तों की ,
बात मानने पर दिल ,
मजबूर हो जाता है
मुश्किलें बढती जायेगी,
पर,
हमतुम जब तक साथ है,
हर रास्ता कटता जाएगा,
हाथों में हाथ लिए....यूँही,
हम बढते जायेंगे,
क्यूंकि,
मुश्किलों से लड़ते हुए,
जब मंजिल पायेंगे,
तब ,
बाकी का रास्ता होगा,
सरल...सुंदर और शांत,
और,
तब भी हम दोनों होंगे साथ,
तो चलो प्रिये आगे बढ़ें.....
विचारों का बोज उठाकर ,
थक जाता है,
फिर भी...
कमबख्त ये दिमाग,
कभी...
अकेला क्यूँ नहीं रह पाता
किश्तों में मिलती है,
हर खुशी,
इतने धनवान तो नहीं,
कि,
एकसाथ ही खरीद लें,
और,
इतने कमजोर भी नहीं,
कि,
इसे खरीद ही न पायें
कंचन कि रंगत और,
कामिनी कि खुशबु ,
एकसाथ मिलाकर ,
ये भोर भयी है,
बना है मनलुभावन
और,
मदहोश ये आसमां,
निगाहें हटाने को,
मन मानता नहीं है,
साँसों में खुशबु और,
आँखों में रंग भर चुके हैं,
तरबतर दिल
खुशियाँ बटोर रहा है....
बहता हुआ चला जाता है,
कभी लौट के नहीं आता है,
वो नदिया का पानी है,
जो वहीँ रह जाता है,
कभीकहीं जाता नहीं है,
वो किनारा है,
फिरभी,
किनारे की पहचान ,
पानी से है,
चंचलता और स्थिरता
यही जीवन का सत्य है
बांसुरी से निकली रागरागिनी,
मन को बेहाल करती है,
राधा का क्या कसूर ,
अगर वो ,
पागल बन कर घुमती है,
रगरग में बसी बंसी कि लय,
हर सुख-दुःख से परे है,
बीना सुर का जीवन जैसे,
बगैर ईश्वर के मंदिर है..
चन्द्र के माथे पे दाग कहां..
यह तो बादलों की परछाई है,
अपने साथी के सीने में छुपकर,
बादलों ने ली अंगडाई है,या
देखनेवालों की नज़रें शायद
दाग बनकर गहराई है.....
मिलजाए वो टूटा पत्ता ,
तो बताऊँ उसे,
अकेला तू ही नहीं टूटा,,
यहाँ सबकुछ बिखरा हुआ है,
तेरे सूखने पे आवाज,
निकल आती है,
यहाँ बीना आवाज के,
जान सुख जाती है,
बिखरने का दर्द ,
समेटे,
हम दोनों ,
मिट्टी में ही मिलेंगे,
बस यही सच सोच कर ,
आंसुओं से टहनी को सिंचती हूँ
निकलता हुआ धुंवा ,
खतरे का आगाज़ होता है,
फिरभी ,
जबतक ये फटता नहीं,
बस्ती वहीँ बसी रहती है,
ये जानते हुए कि,
यह तो उसका स्वभाव है,
और,
जब यह फटता है,
तब भागने कि नौबत आती है,
गुस्सैल इंसान भी ,
ज्वालामुखी समान है,
इनसे दूर रहनेसे ,
भागने कि नौबत ,
नहीं आती......
पूछकर कौन जाता है,
जब जाना तय होता है,
इजाजत मांग भी ली,
तो क्या फर्क पडता है,
इकरार मिला या,
इनकार..........,
फुल क्या पौधों से ,
पूछकर टूटा करते हैं,
या फिर....,
सांस जिस्मको पूछकर,
निकलती है............
अचानक ही ......
मन मृतप्रायः क्यूँ हो जाता है,
वही समा और,
वही मोसम,
पर मन के मोसम को ,
ग्रहण क्यूँ लग जाता है,
हँसती आँखों में,
उदासी कि स्याही ,
क्या ऐसे ही फैल जाती है,
कुछ तो जरुर है,
जो समज से परे है..
Sunday, October 7, 2012
दिल और आँख का रिश्ता ,
कभी समज नहीं आया,
वो आये ,दिल धडका,
और आँखें उठ ही न पाई,
वो चले गए,दिल लडखडाया,
और,आँखें पथरा सी गई,
बेदर्द दिल अपनी ,
हरकतों से न जाने कब,
बाज़ आएगा,
अपनी तकलीफों का ,
पुलिंदा कबतक,
आँखों को पहुंचायेगा,
नादाँ ये भी नहीं सोचता,
दिल ढका हुआ है,
और,
आँखें उजागर,
अब....
कबतक कोई दुनियासे,
नजरें चराएगा.
बचपन कि डगर, और,जवानी का सफर, साथ गुजारा है, हमने यहाँ, अब न गुजरेंगे हम, इस राह से कभी, सुनी गलियों में हमारे, कहकहे अब न गूंजेंगे कभी, और, तुम कहते हो , कुछ नहीं बदलेगा, कैसे ...... कैसे नहीं बदलेगा, साँस यहीं रहेगी, और जिस्म कहीं ...
पारदर्शक दिवार
बारीक,नाजुक सी दिवार होती है, श्रद्धा और अंधश्रद्धा के बीच, जो न पार करते बनती है, ना ही,तोडते बनती है, जब तक इंसान जीता है, इसी दायरेमें बंधा रहता है, और जीवनके सही मायने, समजने कि सोच गँवा देता है........सुप्रभातम...अंबर
बदलाव
मिलकर चले थे साथ हम, और, रास्ते तन्हा थे, आज, रास्ते खिले-खिले हैं, और, हम तनहा है................सुप्रभातं....अम्बर
ऊँची चोटी पर्बत की, मन ही मन मुस्काए, उन्नत खुद को देखकर, घमंड से इतराए, नीचे दबे छोटे पत्थर , याद उसे तब ना आये,
एक कंकर खिसकने पर, जब खुद जमीं पर आये, तब जाके अपनी ऊँचाई का, सही राज जान पाए.....सुप्रभातम..अंबर
महत्वाकांक्षी लोगों की , कमी नहीं इस दुनियामें, जो रौंदने मिटाने की, दुनिया में बसते हैं, और सदा हमारे बारेमें, सोचते हैं,
चलो अच्छा है, अपने लिए, कि.... हम बसने बसाने की, जिंदगी जीते हैं, और यही सोच कर , खुश रहते हैं, कि.... कोई हमारे बारे में भी सोचता है ..........सुप्रभातम...अंबर
रोज निकलता सिंदूरी सूरज,
कभी थकता भी होगा,
उसके भी सीने में ,
किसी याद का कोयला ,
दहकता तो होगा,
राख बनकर आसमां के सीने पे,
बिखरता तो होगा,
तभी तो रोज ,
नए रंग बिखेरता होगा.
ज़रा सी हवा ने क्या छू लिया,
तेरे करीब होने का अहसास पाया,
आँखें मूंदे नरम हवाओं में,
बाहें फैलाने का मन कर आया,
फूलों कि खुशबु सांसों में उलजी,
और, मैने सोचा तू करीब आया,
पलकें हवाओं में बोजिल हुई,
तेरी साँसों को अपने नजदीक पाया,
अब न खोलूंगी आंखें,
ये अहसास में मैने..........
जीवन जो पाया...........
ऐसा क्यूँ होता है?
चंचल मन को रोक न पाउ,
धूम फिर के फिर वही आ जाऊं,
चाहें सांस अटके,
या अखियाँ बरसे,
सोचों पर क्या रोक लगाऊं!
एक हि सूरत भूल ना पाऊं,
मन कि आँखें मुंद ना पाऊं,
जबरन हि सही,
पर हंस ना पाऊं,
ऐसा क्यूँ होता है?
वादियोंमें तेरे साँसों की खुशबु महफूज़ है,
तभी वहाँ तो इतने सारे फुल महक रहे हैं.
फजाओं में तेरी हंसी की मदहोश गूंज है,
तभी तो पत्तोकी सरसराहट कुछ कह रही है.
तुजे देखकर आसमां खुल कर खिल रहा है,
तभी तो उसपे बिखरी हुई लालिमा है....
खुशियों को ढुंढने कि कोशिश् में,
दुखों का ढेर सामने आता है,
जो इंसान इस ढेर को पार कर ,
गुजर जाता है,
खुशियाँ ,
उसे सामने नज़र आती है,
जो पार करते थक जाता है,
खुशियाँ उसके पीछे आते थक जाती है.
संगीत के प्रति प्रेम ,ईश्वर के प्रति प्रेम का प्रतिक है,
जब कोई गुनगुनाता है,तो अपनेआप में खो जाता है,
और जब कोई अपने में गुम हो जाता है तो गाता है,
ईश्वर की आराधना और संगीत की साधना दोनों में
आँखे खुद-बी-खुद बंद हो जाती है,दिल हलका हो जाता है,
न कोई मज़हब बीचमें आता है, न कोई इंसान,
जब संगीत के सुर में खो कर कोई डोलने लगता है.
सब भूल कर जीने लगता है.
सागरके किनारे भीगी रेतमें,
पांवो के निशाँ गहरे लगे,
आओ प्रिये साथ मिलकर,
इस निशाँ पे पाँव धरे,
ताकि .....
मौजें उसे मिटा ना सके,
जब तक हम रहे,
हमारे निशाँ भी रहे .
खुशी भरे आंगनमें बच्चों कि किलकारिया,
ऐसी भाये जैसे ईश्वर की आराधना ,
थके हारे मनको प्रफ्फुलित कर देती है,
दोनों बच्चों की नित नयी शेतानियाँ,
ऐसा सुख जैसे तपती धरा को मिले,
बारिश की अंगडाइयां .
एक शाम फूलों के साथ गुज़ार लें,
आजाओ की आज फूलों का दिन है,
दिल के फुल को तुम्हारी चाहत चाहिए,
और,बागीचे को हमारा साथ ,
थोड़ा सा वक्त निकाल ही लो,
बागीचे के लिए ही सही,
बस एक बात दोहरानी है,
प्यार का कोई दिन नहीं होता,
ना ही कोई साल,बस एक
छोटा सा पल होता है,
जब हमतुम होते हैं साथ.