Sunday, November 27, 2011

जिन्दा लाश

सडकों के किनारे संकुराते ये लोग,
ना घर,ना ठिकाना,ना खाना ,ना कपड़ा,
फिरभी हँसते चेहरे लिए बैठे है,
ना कल की फ़िक्र ना आजकी चिंता,
सिर्फ अपने आपको लिए बैठे है.
धुप को  सेंकते है,आसमान को ओढते है,
सड़क के किनारे संकुराते ये लोग ,
मुट्ठीमे संसार समेटे बैठे है.
ना बच्चोंकी पढ़ाई,ना बूढों की दवाई,
साधू सरीखे अकिंचन हो कर बैठे हैं,
सडक के किनारे संकुराते ये लोग ,
खुद अपनी लाश लिए बैठे है......अंबर

मेरी बेटी

मेरी आँखों का नूर है,मेरी आत्मा का सुकून है,
मेरे जिगर का अहम टुकड़ा है तू,
तेरी ओर देख-देख कर मेरी सांसें चलती है,
तुजे गलेसे लगा कर मुजे शान्ति मिलती है,
तेरी शैतानियों से थककर जब तुजे डांटती हूँ,
उसी पल अपनेआपको भी कोसती हूँ,
मेरा गौरव है तू,मेरा वजूद है तू,
मेरी प्यारी गुडिया मेरा सबकुछ है तू,
आज जब किसीने स्त्रिभ्रूण ह्त्या पर कविता गाई,
मेरे अंतर मन को  सिर्फ तेरी ही याद आई,
कैसे कोई अपने अस्तित्व् को मार सकता है,
यही सोचकर मै जीभर रोई,
काश सब माँ बाप अपनी बेटीसे इतना प्यार करें,
जिसे पाकर वो आपके घर बेटी बनकर ,
हर जनम में आना चाहे.........अंबर.

सरकता समय

दौड़ते  समयको पकड़ना चाहते हैं,
बच्चों की पढाई के लिए खुद पढना चाहते हैं,
बस्तों के बोज़को उठाना चाहते हैं,
बच्चोंके भविष्यको संवार् ने के लिए,
अपना वर्तमान मिटाना चाहते है,
खुदको भूलते हुए,संतान को सम्भालना चाहते है,
हर माता -पिता  अपनी परछाई को,
दुनियामे सबसे उपर देखना चाहते हैं,
यही एक निर्विवाद सत्य है,कि
दौड़ते समय को पकड़ना चाहते हैं,
खुद पढ़ना चाहते हैं...........अंबर 



Saturday, November 26, 2011

मुस्कराहट

हंसके जो बोला ,तुम प्यार समज बैठे,
चुप जो रहे ,तुम इज़हार समज बैठे,
पलकें ज़ुकाली तो स्वीकार समज बैठे,
मुस्कुरा क्या दिया,दिलदार समज बैठे,
हम कुछ भी करे,तुम अपना ही समज बैठे,
अब हम भी क्या बोले,दिल हार जो बैठे.........अंबर

Friday, November 25, 2011

तेरा-मेरा बचपन

बरसता हुआ सावन तेरी याद दिलाए,
ऐसे मोसम में मेरा बचपन वापस आए,
कागज़ की नावोंको बनाना,डुबाना और फिर बनाना,
भीगती हुई हरी घास पे दौडना और गिर जाना,
गिरकर हंसना और हंसकर रूठना,
तेरा मुजे मनाना ,कुछ छोटे-छोटे वादे  करना,
और अगले दिन भूलजाना ,
माचिस की डिब्बी में भरी लाल चनोठी को बांटना ,
मुजे रुलाना और फिर ,
प्यारी बहना कहकर गलेसे लगाना,
क्या तुम्हे याद आते हैं वो पल???.......अंबर 

अपनापन

अपनों के अपनेपन का क्या कहना!
जी में आये जान लुटाए,
जी में आये जान जलाए,
कभी दिलपे खंजर भी खालें,
कभी पिठमें खंजर घुसा दे,
कभी आंसुओ को बहने से रोक ले,
कभी आंसुओं की नदिया बहाएं,
उनकी दिल्लगी का क्या कहना ,
हम भी हैं उनसे दिल लगाए......अंबर.

Thursday, November 24, 2011

तितली

तितली के पंखों का रंग बन जाऊं,
उड़-उड़ कर नित नए गीत गाऊं,
कोमल पुष्पों के सिने से लग जाऊं,
कभी यहाँ कभी वहाँ मंडराउ,
पंख फैलाए बैठ भी जाऊं,
तो भी
प्रकृति की शोभा बढाऊं......अंबर

एक वादा

मुजे चलना है,एक अनजानी राह पर,
सिर्फ तेरे साथ की चाह है,
डर है,इस अनजान पथ पर खो ना जाऊं,
एकबार हाथ थाम कर कह दो,
हर हालमे साथ रहेंगे ,
कीसीभी जनम में बिछड ना पाए,
ऐसा प्यार करेंगे,
एक वादा कर लो बस,
कही देर ना हो जाए .....अम्बर

Sunday, November 20, 2011

अंजाम-ऐ-आशिकी


आशिकोंके अंजाम का पता नहीं ,                                
आगाज़ सब का एक ही होता हें.
हाल-ऐ दिल ,समजाना आसां है,
बयां-ऐ मुहोब्बत जुदा होती है....अंबर.

बेबसी



लाख कोशिशों के बाद भी,इंसान बेबस हो जाता है,
जब कोई अपना मुश्किल में होता है,
सब जगहसे सिमट कर ध्यान वहीँ आ जाता है,
ना हंसी याद आती है,ना मुस्कराहट आती है,
बस एक ही बात बार-बार जेहनमे आती है,
ईश्वर ............................................
इश्वर की मर्जी के आगे ,लाचारी उभर आती है.
जब कोई अपना बेबस होता है.
जीने कोई वजह नज़र नहीं आती है.....अंबर

पतजड


टूटते हुए पत्ते की तड़प कभी महेसुस नहीं होती,
हाल-ऐ-दिल डालींसे पूछो,जिसके कोई आंसू नहीं होते,
फिरसे बनना -संवरना,मुस्कुराना उसकी नियति है,
उसीसे कुछ सिखने की उम्मीद लगाए बैठे हैं.....अंबर

अश्कों का समन्दर


अश्कों को बहेनेसे रोका ना करो
कहीं अंदर ही समंदर ना बन जाए,
किसी रोज अगर ये सागर फटा,
तो न जाने क्या-क्या बहा ले जाए.....अंबर


सरसराहट



सरकते लम्हों की सरसराहट को छुआ है ,
आँखें मूंदे हमने बहोत कुछ देखा है,
सोते,जागते,हँसते,रोते,कराहते,
आज फिर किसीकी दुआओं का असर देखा है...अंबर.

साथ



प्रकृति की इस अदा को जीभर आंखोमें भरके जुमने-गाने का मोसम,
आज तेरा साथ, मेरेसाथ होने पर जीभरके इतराने का मोसम.
चलो प्रिये कुछदेर साथ-साथ चलें,कुचलते पत्तों की आवाज़ को ,
दिलमे भर लें,ऐसा हंसीं वक्त फिर मिले ना मिले......अंबर

Saturday, November 19, 2011

प्रेम


 हरसिंगार की शाख पे लदे फूलोंकी खुशबू ,
मेरी साँसों में तेरी याद बनकर महक रही है,
 मादक खुशबु की ये घड़ियाँ मुजे बहेका रही है,
किसी रोज हरसिंगार के तले दो आँखे बरसी थी
आज भी उस पल को मन तरस रहा है,
काश जीवन भी हरसिगार के फुल सा होता!
ज़रासी जिंदगी में बहुत कुछ कहे जाता,
तेरे आने पे खिल उठाता,और
जाने पर बिखर जाता,
मगर ऐसा हो न सका,
आज भी सबकुछ वहीँ हें ,
सिर्फ
हरसिंगार की जडे,सूखने लगी हें.
शायद अगले साल
हरसिंगार मुरज़ा जाए. ......अंबर तरल दवे