Monday, January 30, 2012

लकीर


हाथकी लकिरोंमें लिखी है तेरी किस्मत,ऐ बंदे ,
अब पढकर समज ले या समज के पढ़ ले,
जो भी देना था दे दिया तेरे हाथ में,
चाहें तू मुट्ठी बंद रखे चाहें खोल दे.

Friday, January 27, 2012

बसंतपंचमी


बसंत की रंगभरी फिजाओंमें आज हलचल है,
फूलोंकी वादियों में कुछ ज्यादा ही निखार है,
भंवरों की गुंजन से सुबह गुनगुना रही है,
दिलोंमें प्यारका पैगाम देने आज बसंतपंचमी आई है.
रंगरंगीन मोसम का आओ हम स्वागत करें ,
पौधों पे बिखरी कुदरत को आँखोंमें बसालें,
आज इतना तो वक्त निकल्ही आएगा ,
वरना सुंदरता की परिभाषा अधूरी राह जायेगी ...

Thursday, January 26, 2012

मेरा वतन


मेरे वतन पे मेरी मुहोब्बत हमशा रहेगी,
मेरे दिलमें इसकी शान सदा जवां होगी,
चंद लोगों की नफ़रत यहाँ कहाँ होगी?
इतने लोगोंके प्यार से ये नफ़रत भी दफ़न होगी,
क्या हुआ ये याद रखना जरुरी नहीं,
क्या होगा इसपे मेरी उम्मीदें बेपनाह होगी,
अपनी छोटीसी चीज़ हम सम्भालके रखते हैं,
क्या अपने वतन को सम्भालनेकी ताकत ना होगी?

आराधना


मंदिर की घंटियाँ और
मस्जिद की अजान हवाओंमें गूंजती है,
सुबहकी पहली किरण इसी आवाजसे निकलती है,
हवाओंमें खुशनुमा पैगाम फैलता है,
जब ईश्वरकी आराधना की बारी आती है....

ओस

 हवाओंमें कहीं तेरे नाम की ओस बिखरी है,
जो बन के तेरी याद मेरी पलकों से बरसी है,
दिनकी धूपमें उड़ जायेगी ये भाप बनकर,
रात होते ही उमड़ के आएगी बारिश बनकर.

Monday, January 23, 2012

अदरकी चाय


सर्दियों की सुबहमें ठिठुरती हुई तन्हाई,
रास्ते को जागने का सन्देश देती उबासी,
सर्द रातों में उनिन्दि सी ये हवाएं,
उठने को मना कर रही रजाई,
फिरभी ....
गर्म अदरकी चाय की प्याली के साथ .....सुप्रभातम...अंबर

सुबह


मांग सजाये,बिंदी लगाए,कजरा सँवारे भोर भई,
पलकें बिछाए,नज़रें उठाये,राह देखें कब रात गई,
रात की नींद को सुबह की गोदमें सुलाने को बेचेन हुई,
पर,हाय रे किस्मत सुरजको भी जल्दी आनेकी तड़प हुई.

Thursday, January 19, 2012

इकरार-ऐ-जुर्म


दिल की चोरी का किस्सा सामने आया है,
सूना है सब के लब पे मेरा नाम आया है,
दिलके दरबारमें आज पेशी होनी है,
हारकर जितना या जीतकर हारना है,
ये तय है कोई एक ही फैसला आना है,
तेरे दीदार की उम्मिद् पे नज़रों का ताला है,
जब मुहोब्बत के जजने फैसला सुनाना है.....

Monday, January 16, 2012

खामोश बारिश


हमने जब कुछ कहना चाहा ,
आप समज नहीं पाए,
आपने जब कुछ कहना चाहा,
हम बोल नहीं पाए,
ऐसे ही वक्त के गुजरते,
हम खामोश हो गए और ,
आप अनजान ,
आज भी दिल पूछता है,
तुम अपने आपसे ,
इतने क्यूँ घबराये?
पर,बहता दरिया और,
चलते बादल फिर नहीं आते,
और जब थक जाते हैं,तो,
बरस पड़ते हैं.....सुप्रभातम..अंबर

पानीका इन्साफ



कश्ती बनकर पानी के सीने पे हम चलें,
चाहें बहाए चाहें डुबोए इन्साफ पानी करे.

Friday, January 13, 2012

दस्तक


हमने तो दिलके दरवाजे बंद किये थे,
फिर तुमने क्यूँ दस्तक दी?
क्या तुम नहीं जानते थे कि ,
दरवाजेको जंग लग चुका है,
और चाबी तक खो चुकी है?
फिर उसी को खोलने कि
कोशिश क्यूँ की?
बेशक लकड़ी अभी टूटी नहीं,
पर कबतक चल सकती है?
कुछ तो ख्याल किया होता,
बंद दरवाजेको शायद न धकेला होता .....अंबर

Thursday, January 12, 2012

तीसरा पाँव

बड़ी मुश्किल से दो पांव पे मिली है जिंदगी,
खुदा करे की तीसरे की जरुरत ना पड़े,
कुछ अच्छे कर्मों का नतीजा है ये जीवन,
उसे ऐसा व्यतीत करें कि,
फिर दुनियामें आने की जरुरत ना पड़े.

बरसात

काले बादल का रुक-रुक के चलना,
 जैसे,
 कजरारी आँखों से काजल का फैलना
आसमां से बरसात का यूँ बरसना,
 जैसे,
आंसुओं का रुक-रुक कर गिरना,
बादलों का यूँ गरजना,
 जैसे ,
दिलके टूटने की आवाज़ होना.

Tuesday, January 10, 2012

जैसे



गहरी चोट खाकर आदमी सहना सिखता है,
जैसे बचपनमें गिरते उठते चलना सिखता है.

हकीकत





न कोई किसीके लिए जीता है,
न कोई किसीके लिए मरता है,
सब अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए,
एक दूसरेका नाम लेकर जीते हैं.

Monday, January 9, 2012

जहर

जहर आखिर जहर होता है,
चाहे खिलाया जाए,
चाहें पिलाया जाए,
मौत इसमें भी आनी है,
मौत उसमें भी आनी है,
लेकिन जो जहर ,
कानोमें घोला जाय वही ,
सबसे कातिल होता है,
इंसान जिसमें मर-मर के जीता है.

Sunday, January 8, 2012

पलकों का मोसम


मदहोश आँखों ने जब पलकें उठाई,
मोसम पे जैसे बहार आई,
हवाओमें यूँही मदहोशी छाई,
बेवजह सितारे छुपने लगे,
फूलोंकी खुशबु गुनगुनाने लगी,
अब पलकों को ज़ुकाने की जुर्रत न करना,
वरना ........
बिना मोसम पतजड़ आ जायेगी.

Saturday, January 7, 2012

कांटे




जिन काँटों में फुल पलते हैं,
उन्हें छूने से हम डरते हैं,
क्यूंकि,
जो सुंदर है वही अच्छा लगता है,
उसके पीछे क्या है कौन जानता है?.

हो सकता है......

इस खंडहर में कहीं कुछ तो दफन जरुर होगा,
वरना विराने में भी चमन कैसे खिलता?
किसी की आह किसीकी चाह का निशाँ जरुर होगा,
वरना दिल को यहाँ पर सुकून कैसे मिलता?
इस टूटी हुई दीवारों में टूटा हुआ दिल भी होगा,
वरना टूट के बिखरने का गुमां कैसे होता?
किसीके  आंसू किसीकी खुशी भी रही होगी,
वरना फूलों को पानी कैसे मिलता?
इस खंडहर में.............................................;



हर सुबह नयी उम्मीद से निकलती है,
और
शाम उसीका जनाज़ा लेकर आ जाती है.
वक्त के गुज़रने से कोई फर्क नहीं पडता,
हर शाम हर सुबह की परछाई होती है.

Friday, January 6, 2012

मन की थकान



अचानक सबकुछ क्यूँ बदल जाता है?
किसी ठहराव को ढूंढते हम क्यूँ खो जाते हैं?
अपनों से इतना दर्द हम क्यूँ पाते हैं?
हर लम्हा खुद पर भारी हो जाता है,
जब किसीसे कोई उम्मीद रखते हैं,
छोटीसी इस जिंदगीमें ,
जमाने भरकी थकान क्यूँ भर जाती है,
वही सबकुछ है,फिर भी ,
अचानक सबकुछ क्यूँ बदल जाता है?????

गम की दौलत


तुजे मेरे आंसू इतने भाये,कि हंसी ने आना ही छोड़ दिया,
मेरे गमसे इतना लगाव हुआ कि,खुशी ने रास्ता बदल लिया,
दिलके धावों से इतना प्यार हुआ कि,उसने धडकना छोड़ दिया,
तेरे इस बेइंतिहा प्यार का भी क्या कहना,ना मर पाए ना जी पाए.
अपने आपको समेटे तेरी खुशियों के गीत गाते रहे,
तेरे दी हुई इस दौलत को हर वक्त संभाले रहे.