Thursday, December 29, 2011

भरोसा

किसी मासूम से खयालात के चलते,
अपनों से प्यार जताया था,
वक्त के चलते,अपनेपे गुस्सा आया था,
कि क्यूँ किसीपे भरोसा आया था?

भोर

भोर हुई ,पंछी जागे,
सूरज अभी सोया है,
चाँद का टिका माथे पे लगाए,
आसमां अभी सज रहा है.

Wednesday, December 28, 2011

रात के आंसू

रात के आंसू ओस बनकर ,
पत्तियों के सिने पे बिखर गए,
दिनके उजालेमें खूबसूरत,
नजारोंमे बदल गए.

दस्तूरे मुहोब्बत

चाँद के माथे पे कोई शिकन आये न आये,
दस्तूरे मुहोब्बत में  कोई शिकवा नहीं होता.

लफ्ज़.

बोलने की सजा मिलती  है लोगोंको,
हमने तो  चुप रहकर सज़ा पाई है,
उस वक्त अगर बोल पाते कुछलफ्ज़,
आज दिलपे गम का पर्दा न पडता,
होठों को सीते-सीते दिलपे चोट खाई है,
कुछ सुनने की राहमें जिंदगी गुजर आई है.
हमने तो चुप रहनेकी सज़ा पाई है.




Saturday, December 24, 2011

मै

जिंदगी गुजर जाने पर ये ख़याल आया,
कही *रफीक बनाया तो कहीं *रकीब पाया,
जिंदगीके कई लम्होमे खुद को अकेला पाया,
कोई साथ  आया भी तो दर्द साथ लाया,
ना मैने कुछ चाहा,ना कभी वक्त से माँगा,
जो कुछभी हाथ आया,बस देने के काम आया .

*रफीक-दोस्त
*रकीब-दुश्मन 

Friday, December 23, 2011

बिदाई

ये कैसे सिलसिले से गुजरना पडता है?
हर बापको बेटी को रुखसत करना पडता है,
पत्थर दिल इन्सान को भी रोना पडता है,
जब बेटी कि डोली को जाना होता है

Thursday, December 22, 2011

दिल के आंसू

मेरे अश्कों को पोंछ्नेका प्रयास न कर,
किसी पराये से इतना अनुराग न कर,
बड़ी मुश्किल से मिला है अश्कों को रास्ता ,
उसे भी बंद करनेका गलत काम न कर,
अंदर ही रुक जायेंगे अगर ये आंसू ,
उबलते जज्बातों का धुआं फिर फैलेगा,
इस धुएं के कारण सांसों को परेशां न कर,
मेरे अश्कों को पोंछ्नेका प्रयास न कर .

सज़ा

तेरे बसने कि जगह भी कुछ अजीब है,जालिम,
दिलका कोना भी क्या कोई बसेरा होता है?
बिना बताए छुप जाना अच्छा होता है क्या?
सरासर ज्यादती को  सह भी नहीं सकते ,
 तुम्हे सज़ा दिए बिना रह भी नहीं सकते,
अब सज़ा दे तो कैसे दें, और किसको दें?
तेरी सज़ा मेरेही दिलमें छेद कर जायेगी.............अंबर.


Tuesday, December 20, 2011

समयका तराजू.

समय के तराज़ुमें बैठे रहें,
वक्त आगे निकलता गया,
और हम वहीँ रह गए,
पता न था रेतके सरकने का,
यूँही हम राह देखते रह गए,
पहिये का घूमना अच्छा लगा,
एक खेल समज़ कर सह गए,
ज़ज्बों को समजाने  के लिए,
खुद को बहलाने  लगे.....अंबर 

Monday, December 19, 2011

नासूर


यादें तेरी ज़ख्म बनके दर्द दे गई,
मिलती है,अब नसीहत की दवा कीजिए,
नासूर को नश्तर की जरुरत ही नहीं,
कैसे समज़ाएं उन्हें कि बस दुआ कीजिए.....अंबर

अपने

अपनों को अपनों से गिलेशिकवे नहीं होते,
गर होते हैं,तो वो अपने -अपने नहीं होते..........अंबर 

Sunday, December 18, 2011

नशा

मुद्दतें हुई,तेरी आँखों के पैमाने पिए हुए,
उठती नहीं हैं आँखें नशे के मारे हुए,
ये हाल गर एक पैमाने से जो  हुआ,
मुमकिन है,पुरानीशराबके मारे हुआ!!
अब नया जाम कैसे पीया जाएगा?
चढ़ेगा नशा तो कभी उतर ना पायेगा,
होशोहवास खोने पर तू रूबरू होगा ,
फिर तेरी आँखों का मयखाना भी तबाह होगा ......अंबर

Saturday, December 17, 2011

कजरा

काजल का टिका लगाके ,नज़र बचाना चाहें,
साजन की काली आंखोमें बस कर छुपना चाहें,
नज़र उठाकर देखना चाहें,धुंधला नज़र आयें,
कजरा बह जाए आंखोंसे ऐसी प्रीत ना भाये........अंबर.

Friday, December 16, 2011

मन की पूजा

मंदिर जाऊं ,मस्जिद जाऊं,जाऊं गंगा घाट,
तनको वहाँ-वहाँ ले जाऊं जहां प्रभु होने की आस,
पूजा कराउं ,पाठ कराउं,और कराउं जाप,
फल धराऊ ,फुल धराऊ,धराउं  सारे ठाठ,
खुद  को छलकर खुश हो जाऊं,कर लिए सारे काम,
अब कोई पाप कभी ना लागे ,सब धुल गए बार-बार,
आँखें बंधकर सोने जाऊं,नींद ना आये सारी रात,
कभी नींद आये और सपना आये,
नियति पूछे एक सवाल,
सबकुछ किया तनको बहलाने,
मनको ना धोया एक भी बार?
कैसी पूजा,कैसा चढावा जब ,
छल किया अपने साथ?.......अंबर



Thursday, December 15, 2011

कम ना ज्यादा

देना हो तो दीजिए,
प्यार,खुशी और विश्वास,
इससे ज्यादा कछु ना भाये,
ना कछु इससे कम........अंबर 

Wednesday, December 14, 2011

कोहरा

कभी पीछे मुड के भी देखा होता,
बिच राहमे बुत बने हमभी खड़े थे,
आगे का रास्ता भले ही तुम्हारा था,
पीछे तो हम दोनों ही साथ चले थे!
आसमां को लिए हम जमीं पर खड़े थे,
कभी बादल भी बरसेंगे याद नहीं था,
पानीमे बहेंगे अंदाज़ नहीं था,
पीछे देखने से तुम्हे एतराज था,
आगे बढने से हमें इनकार,
वही दोराहा ,वही असमन्ज़स
वही धुंधलापन ,वही लगाव,
बस,कोहरा हटने से पहेले ,
रस्ते का चुनाव ........
कभी  पीछे मुड के भी देखा होता,
धुंधलापन साफ़ हो चुका था..........अंबर.








प्रीत

प्रीत ना करिए सोच-सोच,
सोचे प्रीत ना होय,
बिन सोचे जो हो जाए,
वही सच्ची प्रीत होय.........अंबर 

Saturday, December 10, 2011

जीवन की लहेरें

हर लम्हे को जीने के लिए ज़िंदा रहेना पडता है,
मर-मर कर जीने वाले को हर वक्त मरना पड़ता है,
समंदर की लहेरें भी किनारे पे आकर  मिट जाती है,
पर मिटने से पहेले बहोत कुछ कह जाती है,
अपने को मिटा ने के लिए किनारे तक दौड़ती है,
और मिटने के लिए  जी-जान लगा देती है,
उसकी नियति मिटने में है,इसीलिए,
मिटने की ख्वाहिश में जीती है...........अंबर

Thursday, December 8, 2011

तुजे क्यूँ भुलाना चाहूँ.............

तुजे क्यूँ भुलाना चाहूँ,
जब ,तेरी याद से मेरा दिन उगता है,
मेरे सीनेमें भले ही दर्द उठता है,
आँखें आसमानको यूँही ताकती है,
तुजे क्यूँ भुलाना चाहूँ,
जब तेरा चेहरा मेरे दिलको भाता है,
मेरे चेहरे पे यूँही मुस्कान आ जाती है,
और आंखोंसे सावन सदा बरसता है,
तुजे क्यूँ भुलाना चाहूँ,
तेरे ना होने पर तुजे याद ना करूँ?
मेरे अस्तित्वको बरबाद न करूँ?
तुने ऐसा तो वादा नहीं लिया था!

तुजे क्यूँ भुलाना चाहूँ ,
जब यादें ही मेरी जिंदगी है,
अपनेआपको कैसे मिटाऊँ,
शायद तू भी मुजे भूलेसे  याद करले!!!!!!अंबर






Wednesday, December 7, 2011

बस्ती और खँडहर


कल तक जहाँ बस्ती थी ,
जिंदगीकी किलकारियां थी,
रुकनेका एक मकसद था,
कहते है,वहाँ मकान था,
किसीका वहाँ मकाम था,
आज ,
टूटती हुई इंटें नज़ारा बयाँ करती है,
इंसान की मजबुरी के हालात बयाँ करती है,
बस्ती और खँडहर के किस्से बयाँ करती है.........अंबर

Sunday, December 4, 2011

डोली


तेरी डोली ने मेरे ज़ज्बों को रुलाया,
हदसे गुजरे दर्द ने मेरे प्यारको मिटाया,
अब ना दर्द है,ना आंसूओंका कुआं,
एक अन्धेरा कोहरा है,मेरे दरमियाँ ,
सिर्फ डूबते जाना है,लेके तेरी यादोंका साया,
दर्द अब दवा बनके साथ आया,
और तेरी खुशियों की दुआओं में ,
मेरे जीने का मकसद नज़र आया,
जिंदगी गुजर जायेगी या,फिर मैं !
इसी इंतजारमें सफर का रास्ता नज़र आया.....अंबर.

दोस्ती


दोस्त बनना आसां है,दोस्ती निभाना मुश्किल,
जान देना आसां है,जान बचाना मुश्किल,
जो मुश्किलों से ,गुजर जाते हैं,
उन्हें दिलसे निकालना मुश्किल........अंबर.

कभी-न-कभी


कभी न कभी तो मिल ही जाओगे,
अपनी ही आँखों से तब गिर जाओगे,
दिलको समजाने के लिए ही सही,
कुछ न कुछ तो कह जाओगे ! ......अंबर

Saturday, December 3, 2011

घाव


     
        रिश्तों के धावों को सहलाते रहे,
रिसते धावों को दबाते रहें,
तेरे दिए ज़ख्मों की दवाके लिए,
हम दर-ब-दर ठोकरें खातें रहें........अंबर

Friday, December 2, 2011

बांस का बिस्तर.

महल बनाया,बागीचा सजाया,
खुद को निखारा,जीवन संवारा,
सबकुछ तब काम न आया,
जब,जीवनका अंत आया,
तब सिर्फ,बांस का बिस्तर और,
मिट्टीकी दरी ने ही  साथ निभाया........अंबर.