Wednesday, December 14, 2011

कोहरा

कभी पीछे मुड के भी देखा होता,
बिच राहमे बुत बने हमभी खड़े थे,
आगे का रास्ता भले ही तुम्हारा था,
पीछे तो हम दोनों ही साथ चले थे!
आसमां को लिए हम जमीं पर खड़े थे,
कभी बादल भी बरसेंगे याद नहीं था,
पानीमे बहेंगे अंदाज़ नहीं था,
पीछे देखने से तुम्हे एतराज था,
आगे बढने से हमें इनकार,
वही दोराहा ,वही असमन्ज़स
वही धुंधलापन ,वही लगाव,
बस,कोहरा हटने से पहेले ,
रस्ते का चुनाव ........
कभी  पीछे मुड के भी देखा होता,
धुंधलापन साफ़ हो चुका था..........अंबर.








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