Thursday, November 24, 2011

तितली

तितली के पंखों का रंग बन जाऊं,
उड़-उड़ कर नित नए गीत गाऊं,
कोमल पुष्पों के सिने से लग जाऊं,
कभी यहाँ कभी वहाँ मंडराउ,
पंख फैलाए बैठ भी जाऊं,
तो भी
प्रकृति की शोभा बढाऊं......अंबर

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