Saturday, April 7, 2012

स्वयंसिद्धा

स्वप्नद्रष्टा नहीं ,मैं स्वयंसिद्धा हूँ,
अपने सिद्धांतों पे अटल द्रष्टा हूँ,
सच के लिए लडना मेरी फितरत है,
और, जूठ से है असीम नफ़रत
अच्छा लगना मेरी ख्वाहिश नहीं है,
मन पर बोज न हो यही कोशिश है,
अपने विचारों कि साम्राग्नी हूँ,
किसीके रहमोंकरम् कि मोहताज़ नहीं हूँ,
आत्म द्रष्टा हूँ,आत्म गर्विता हूँ,
जो भी हूँ बस, तुम्हारी हूँ...

1 comment:

  1. वाह!!!
    बहुत सुंदर भाव है अम्बर जी .........

    मगर टंकण त्रुटियाँ खटक रहीं है.कृपया सुधार लीजिए.
    जूठ-झूट
    बोज-बोझ
    साम्रग्नी-साम्राज्ञी
    कि-की

    कृपया अन्यथा ना लें.
    सादर
    अनु

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