Tuesday, April 3, 2012

एक अनार और हज़ार बीमार ,
एक छुट्टी और हज़ार काम,
बच्चें सोचे आज मम्मी कि छुट्टी 
बढ़िया खाना मिलेगा,
पतिदेव सोचे आज छुट्टी ,
साथ बैठने का मौक़ा मिलेगा,
काम वाले सोचे आज छुट्टी,
आज हमें आराम मिलेगा,
मम्मा सोचे आज छुट्टी, 
आज बातें करने का का वक्त मिलेगा,
महेमान सोचे आज छुट्टी,
आज तो मिलने जाना हि पडेगा,
घर सोचे आज छुट्टी ,
आज तो सफाई होकर हि रहेगी, 
और,
मैं सोचूं आज छुट्टी ,
सबको खुश रखूं या मैं खुश रहूँ?
फिर सोचूं 
यही तो है मेरी खुशी ...
एक अनार के दाने सबमें बांटूगी.

3 comments:

  1. बेहतरीन।

    अंत की पंक्तियाँ बहुत कुछ कह जाती हैं।


    सादर
    ----
    ‘जो मेरा मन कहे’ पर आपका स्वागत है

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  2. bahut khoob...ek aurat ko apni khushi sab ki khushi mein hi talashni padti hai...
    बलि

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