Thursday, December 29, 2011
Wednesday, December 28, 2011
Saturday, December 24, 2011
Friday, December 23, 2011
Thursday, December 22, 2011
Tuesday, December 20, 2011
Sunday, December 18, 2011
Saturday, December 17, 2011
Friday, December 16, 2011
मन की पूजा
मंदिर जाऊं ,मस्जिद जाऊं,जाऊं गंगा घाट,
तनको वहाँ-वहाँ ले जाऊं जहां प्रभु होने की आस,
पूजा कराउं ,पाठ कराउं,और कराउं जाप,
फल धराऊ ,फुल धराऊ,धराउं सारे ठाठ,
खुद को छलकर खुश हो जाऊं,कर लिए सारे काम,
अब कोई पाप कभी ना लागे ,सब धुल गए बार-बार,
आँखें बंधकर सोने जाऊं,नींद ना आये सारी रात,
कभी नींद आये और सपना आये,
नियति पूछे एक सवाल,
सबकुछ किया तनको बहलाने,
मनको ना धोया एक भी बार?
कैसी पूजा,कैसा चढावा जब ,
छल किया अपने साथ?.......अंबर
तनको वहाँ-वहाँ ले जाऊं जहां प्रभु होने की आस,
पूजा कराउं ,पाठ कराउं,और कराउं जाप,
फल धराऊ ,फुल धराऊ,धराउं सारे ठाठ,
खुद को छलकर खुश हो जाऊं,कर लिए सारे काम,
अब कोई पाप कभी ना लागे ,सब धुल गए बार-बार,
आँखें बंधकर सोने जाऊं,नींद ना आये सारी रात,
कभी नींद आये और सपना आये,
नियति पूछे एक सवाल,
सबकुछ किया तनको बहलाने,
मनको ना धोया एक भी बार?
कैसी पूजा,कैसा चढावा जब ,
छल किया अपने साथ?.......अंबर
Thursday, December 15, 2011
Wednesday, December 14, 2011
कोहरा
कभी पीछे मुड के भी देखा होता,
बिच राहमे बुत बने हमभी खड़े थे,
आगे का रास्ता भले ही तुम्हारा था,
पीछे तो हम दोनों ही साथ चले थे!
आसमां को लिए हम जमीं पर खड़े थे,
कभी बादल भी बरसेंगे याद नहीं था,
पानीमे बहेंगे अंदाज़ नहीं था,
पीछे देखने से तुम्हे एतराज था,
आगे बढने से हमें इनकार,
वही दोराहा ,वही असमन्ज़स
वही धुंधलापन ,वही लगाव,
बस,कोहरा हटने से पहेले ,
रस्ते का चुनाव ........
कभी पीछे मुड के भी देखा होता,
धुंधलापन साफ़ हो चुका था..........अंबर.
बिच राहमे बुत बने हमभी खड़े थे,
आगे का रास्ता भले ही तुम्हारा था,
पीछे तो हम दोनों ही साथ चले थे!
आसमां को लिए हम जमीं पर खड़े थे,
कभी बादल भी बरसेंगे याद नहीं था,
पानीमे बहेंगे अंदाज़ नहीं था,
पीछे देखने से तुम्हे एतराज था,
आगे बढने से हमें इनकार,
वही दोराहा ,वही असमन्ज़स
वही धुंधलापन ,वही लगाव,
बस,कोहरा हटने से पहेले ,
रस्ते का चुनाव ........
कभी पीछे मुड के भी देखा होता,
धुंधलापन साफ़ हो चुका था..........अंबर.
Saturday, December 10, 2011
जीवन की लहेरें
हर लम्हे को जीने के लिए ज़िंदा रहेना पडता है,
समंदर की लहेरें भी किनारे पे आकर मिट जाती है,
पर मिटने से पहेले बहोत कुछ कह जाती है,
अपने को मिटा ने के लिए किनारे तक दौड़ती है,
और मिटने के लिए जी-जान लगा देती है,
उसकी नियति मिटने में है,इसीलिए,
मिटने की ख्वाहिश में जीती है...........अंबर
Thursday, December 8, 2011
तुजे क्यूँ भुलाना चाहूँ.............
तुजे क्यूँ भुलाना चाहूँ,
जब ,तेरी याद से मेरा दिन उगता है,
मेरे सीनेमें भले ही दर्द उठता है,
आँखें आसमानको यूँही ताकती है,
तुजे क्यूँ भुलाना चाहूँ,
जब तेरा चेहरा मेरे दिलको भाता है,
मेरे चेहरे पे यूँही मुस्कान आ जाती है,
और आंखोंसे सावन सदा बरसता है,
तुजे क्यूँ भुलाना चाहूँ,
तेरे ना होने पर तुजे याद ना करूँ?
मेरे अस्तित्वको बरबाद न करूँ?
तुने ऐसा तो वादा नहीं लिया था!
जब ,तेरी याद से मेरा दिन उगता है,
मेरे सीनेमें भले ही दर्द उठता है,
आँखें आसमानको यूँही ताकती है,
तुजे क्यूँ भुलाना चाहूँ,
जब तेरा चेहरा मेरे दिलको भाता है,
मेरे चेहरे पे यूँही मुस्कान आ जाती है,
और आंखोंसे सावन सदा बरसता है,
तुजे क्यूँ भुलाना चाहूँ,
तेरे ना होने पर तुजे याद ना करूँ?
मेरे अस्तित्वको बरबाद न करूँ?
तुने ऐसा तो वादा नहीं लिया था!
तुजे क्यूँ भुलाना चाहूँ ,
जब यादें ही मेरी जिंदगी है,
अपनेआपको कैसे मिटाऊँ,
शायद तू भी मुजे भूलेसे याद करले!!!!!!अंबर
Wednesday, December 7, 2011
Sunday, December 4, 2011
डोली
तेरी डोली ने मेरे ज़ज्बों को रुलाया,
हदसे गुजरे दर्द ने मेरे प्यारको मिटाया,
अब ना दर्द है,ना आंसूओंका कुआं,
एक अन्धेरा कोहरा है,मेरे दरमियाँ ,
सिर्फ डूबते जाना है,लेके तेरी यादोंका साया,
दर्द अब दवा बनके साथ आया,
और तेरी खुशियों की दुआओं में ,
मेरे जीने का मकसद नज़र आया,
जिंदगी गुजर जायेगी या,फिर मैं !
इसी इंतजारमें सफर का रास्ता नज़र आया.....अंबर.
Saturday, December 3, 2011
Friday, December 2, 2011
Sunday, November 27, 2011
जिन्दा लाश
सडकों के किनारे संकुराते ये लोग,
फिरभी हँसते चेहरे लिए बैठे है,
ना कल की फ़िक्र ना आजकी चिंता,
सिर्फ अपने आपको लिए बैठे है.
धुप को सेंकते है,आसमान को ओढते है,
सड़क के किनारे संकुराते ये लोग ,
मुट्ठीमे संसार समेटे बैठे है.
ना बच्चोंकी पढ़ाई,ना बूढों की दवाई,
साधू सरीखे अकिंचन हो कर बैठे हैं,
सडक के किनारे संकुराते ये लोग ,
खुद अपनी लाश लिए बैठे है......अंबर
मेरी बेटी
मेरी आँखों का नूर है,मेरी आत्मा का सुकून है,
मेरे जिगर का अहम टुकड़ा है तू,
तेरी ओर देख-देख कर मेरी सांसें चलती है,
तुजे गलेसे लगा कर मुजे शान्ति मिलती है,
तेरी शैतानियों से थककर जब तुजे डांटती हूँ,
उसी पल अपनेआपको भी कोसती हूँ,
मेरा गौरव है तू,मेरा वजूद है तू,
मेरी प्यारी गुडिया मेरा सबकुछ है तू,
आज जब किसीने स्त्रिभ्रूण ह्त्या पर कविता गाई,
मेरे अंतर मन को सिर्फ तेरी ही याद आई,
कैसे कोई अपने अस्तित्व् को मार सकता है,
यही सोचकर मै जीभर रोई,
काश सब माँ बाप अपनी बेटीसे इतना प्यार करें,
जिसे पाकर वो आपके घर बेटी बनकर ,
हर जनम में आना चाहे.........अंबर.
मेरे जिगर का अहम टुकड़ा है तू,
तेरी ओर देख-देख कर मेरी सांसें चलती है,
तुजे गलेसे लगा कर मुजे शान्ति मिलती है,
तेरी शैतानियों से थककर जब तुजे डांटती हूँ,
उसी पल अपनेआपको भी कोसती हूँ,
मेरा गौरव है तू,मेरा वजूद है तू,
मेरी प्यारी गुडिया मेरा सबकुछ है तू,
आज जब किसीने स्त्रिभ्रूण ह्त्या पर कविता गाई,
मेरे अंतर मन को सिर्फ तेरी ही याद आई,
कैसे कोई अपने अस्तित्व् को मार सकता है,
यही सोचकर मै जीभर रोई,
काश सब माँ बाप अपनी बेटीसे इतना प्यार करें,
जिसे पाकर वो आपके घर बेटी बनकर ,
हर जनम में आना चाहे.........अंबर.
सरकता समय
दौड़ते समयको पकड़ना चाहते हैं,
बच्चों की पढाई के लिए खुद पढना चाहते हैं,
बस्तों के बोज़को उठाना चाहते हैं,
बच्चोंके भविष्यको संवार् ने के लिए,
अपना वर्तमान मिटाना चाहते है,
खुदको भूलते हुए,संतान को सम्भालना चाहते है,
हर माता -पिता अपनी परछाई को,
दुनियामे सबसे उपर देखना चाहते हैं,
यही एक निर्विवाद सत्य है,कि
दौड़ते समय को पकड़ना चाहते हैं,
खुद पढ़ना चाहते हैं...........अंबर
Saturday, November 26, 2011
Friday, November 25, 2011
तेरा-मेरा बचपन
बरसता हुआ सावन तेरी याद दिलाए,
ऐसे मोसम में मेरा बचपन वापस आए,
कागज़ की नावोंको बनाना,डुबाना और फिर बनाना,
भीगती हुई हरी घास पे दौडना और गिर जाना,
गिरकर हंसना और हंसकर रूठना,
तेरा मुजे मनाना ,कुछ छोटे-छोटे वादे करना,
और अगले दिन भूलजाना ,
माचिस की डिब्बी में भरी लाल चनोठी को बांटना ,
मुजे रुलाना और फिर ,
प्यारी बहना कहकर गलेसे लगाना,
क्या तुम्हे याद आते हैं वो पल???.......अंबर
ऐसे मोसम में मेरा बचपन वापस आए,
कागज़ की नावोंको बनाना,डुबाना और फिर बनाना,
भीगती हुई हरी घास पे दौडना और गिर जाना,
गिरकर हंसना और हंसकर रूठना,
तेरा मुजे मनाना ,कुछ छोटे-छोटे वादे करना,
और अगले दिन भूलजाना ,
माचिस की डिब्बी में भरी लाल चनोठी को बांटना ,
मुजे रुलाना और फिर ,
प्यारी बहना कहकर गलेसे लगाना,
क्या तुम्हे याद आते हैं वो पल???.......अंबर
Sunday, November 20, 2011
बेबसी
लाख कोशिशों के बाद भी,इंसान बेबस हो जाता है,
जब कोई अपना मुश्किल में होता है,
सब जगहसे सिमट कर ध्यान वहीँ आ जाता है,
ना हंसी याद आती है,ना मुस्कराहट आती है,
बस एक ही बात बार-बार जेहनमे आती है,
ईश्वर ............................................
इश्वर की मर्जी के आगे ,लाचारी उभर आती है.
जब कोई अपना बेबस होता है.
जीने कोई वजह नज़र नहीं आती है.....अंबर
Saturday, November 19, 2011
प्रेम
मेरी साँसों में तेरी याद बनकर महक रही है,
मादक खुशबु की ये घड़ियाँ मुजे बहेका रही है,
किसी रोज हरसिंगार के तले दो आँखे बरसी थी
आज भी उस पल को मन तरस रहा है,
काश जीवन भी हरसिगार के फुल सा होता!
ज़रासी जिंदगी में बहुत कुछ कहे जाता,
तेरे आने पे खिल उठाता,और
जाने पर बिखर जाता,
मगर ऐसा हो न सका,
आज भी सबकुछ वहीँ हें ,
सिर्फ
हरसिंगार की जडे,सूखने लगी हें.
शायद अगले साल
हरसिंगार मुरज़ा जाए. ......अंबर तरल दवे
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