Hindi Poems
Saturday, December 3, 2011
घाव
रिश्तों के धावों को सहलाते रहे,
रिसते धावों को दबाते रहें,
तेरे दिए ज़ख्मों की दवाके लिए,
हम दर-ब-दर ठोकरें खातें रहें........अंबर
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