Wednesday, December 7, 2011

बस्ती और खँडहर


कल तक जहाँ बस्ती थी ,
जिंदगीकी किलकारियां थी,
रुकनेका एक मकसद था,
कहते है,वहाँ मकान था,
किसीका वहाँ मकाम था,
आज ,
टूटती हुई इंटें नज़ारा बयाँ करती है,
इंसान की मजबुरी के हालात बयाँ करती है,
बस्ती और खँडहर के किस्से बयाँ करती है.........अंबर

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