Sunday, November 20, 2011

पतजड


टूटते हुए पत्ते की तड़प कभी महेसुस नहीं होती,
हाल-ऐ-दिल डालींसे पूछो,जिसके कोई आंसू नहीं होते,
फिरसे बनना -संवरना,मुस्कुराना उसकी नियति है,
उसीसे कुछ सिखने की उम्मीद लगाए बैठे हैं.....अंबर

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