सडकों के किनारे संकुराते ये लोग,
फिरभी हँसते चेहरे लिए बैठे है,
ना कल की फ़िक्र ना आजकी चिंता,
सिर्फ अपने आपको लिए बैठे है.
धुप को सेंकते है,आसमान को ओढते है,
सड़क के किनारे संकुराते ये लोग ,
मुट्ठीमे संसार समेटे बैठे है.
ना बच्चोंकी पढ़ाई,ना बूढों की दवाई,
साधू सरीखे अकिंचन हो कर बैठे हैं,
सडक के किनारे संकुराते ये लोग ,
खुद अपनी लाश लिए बैठे है......अंबर
True and Sad Part of Life......It's Reality...
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