Saturday, April 28, 2012

जलन

रोज निकलता सिंदूरी सूरज,
कभी थकता भी होगा,
उसके भी सीने में  ,
किसी याद का कोयला ,
दहकता तो होगा,
राख बनकर आसमां के सीने पे,
बिखरता तो  होगा,
तभी तो रोज ,
नए रंग बिखेरता होगा.

1 comment:

  1. बहुत खूबसूरत .....
    वाह!!!!


    अनु

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