Saturday, March 31, 2012

ऐसा क्यूँ होता है?

ऐसा क्यूँ होता है?
चंचल मन को रोक न पाउ,
धूम फिर के फिर वही आ जाऊं,
चाहें सांस अटके,
या अखियाँ बरसे,
सोचों पर क्या रोक लगाऊं!
एक हि सूरत भूल ना पाऊं,
मन कि आँखें मुंद ना पाऊं,
जबरन हि सही,
पर हंस ना पाऊं,
ऐसा क्यूँ होता है?




8 comments:

  1. आपको रामनवमी और मूर्खदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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    कल 02/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  2. जब मनकी मन में रह जाती
    तब ऐसा ही होता है ......

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  3. जब कोई फांस अटकी हो मन में तो कोई कैसे हँसे....

    सुन्दर भाव अम्बर जी.,....

    अनु

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    1. जी,अनुजी ,धन्यवाद

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  4. man me hai koi bat kyo fansi
    kahado dol ki bat ...de hansi
    nahi rahegi man ki faans

    uttam rachana

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  5. धन्यवाद यशवंतजी .

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  6. भावों से नाजुक शब्‍द...

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