छुईमुई सी लगती थी,
बड़ी शर्मीली लगती थी,
मेरी कुछ नादाँ ख्वाहिशें,
बड़ी ही जानलेवा लगती थी,
आज ....
उन्ही ख्वाहिशों को ,
याद करते हुए,
मैं खुद ही,
छुईमुई बन जाती हूँ,
वक्त के चलते ,
इच्छाएं भी
नया रूप धर लेती है,
और इसी दायरेमें ,
सिमट कर हम भी,
जीये जाते हैं.....
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