निकलता हुआ धुंवा ,
खतरे का आगाज़ होता है,
फिरभी ,
जबतक ये फटता नहीं,
बस्ती वहीँ बसी रहती है,
ये जानते हुए कि,
यह तो उसका स्वभाव है,
और,
जब यह फटता है,
तब भागने कि नौबत आती है,
गुस्सैल इंसान भी ,
ज्वालामुखी समान है,
इनसे दूर रहनेसे ,
भागने कि नौबत ,
नहीं आती......
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