स्वप्नद्रष्टा नहीं ,मैं स्वयंसिद्धा हूँ,
सच के लिए लडना मेरी फितरत है,
और, जूठ से है असीम नफ़रत
अच्छा लगना मेरी ख्वाहिश नहीं है,
मन पर बोज न हो यही कोशिश है,
अपने विचारों कि साम्राग्नी हूँ,
किसीके रहमोंकरम् कि मोहताज़ नहीं हूँ,
आत्म द्रष्टा हूँ,आत्म गर्विता हूँ,
जो भी हूँ बस, तुम्हारी हूँ...
वाह!!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव है अम्बर जी .........
मगर टंकण त्रुटियाँ खटक रहीं है.कृपया सुधार लीजिए.
जूठ-झूट
बोज-बोझ
साम्रग्नी-साम्राज्ञी
कि-की
कृपया अन्यथा ना लें.
सादर
अनु